ठंड का समय था, घना कोहरा छाया था, सारे लोग जल्दी जल्दी कार्यालय का काम ख़त्म करके घर की तरफ निकल रहे थे। चौबे जी उस समय के बड़े अधिकारियों में से एक थे, वे उस समय के उच्च वर्ग के लोगों में एक अमीन का काम करते थे !
रोज की तरह ही उस दिन कम ख़त्म होने के बाद घर के लिए अपनी गाड़ी से रवाना होने लगे। रास्ते में उन्हें हाट से कुछ समान भी लेना था तो वे और साथियों से अलग हो गये। उन्होंने घर की कुछ जरूरत के समान लिए और गाड़ी आगे बढ़ा दी।
आगे जाने पर उन्हें मछली बाज़ार दिखा और वे मछली खरीदने के लिए रुक गये ! ताज़ी मछलियाँ लेने और देखने में वक्त ज़्यादा ही गुजर गया ! उनकी जब अपनी घड़ी पर नज़र गई तो उन्हें आभास हुआ कि घर जाने में बहुत देर हो जाएगी और यह सब लेकर घर पहुँचने में काफ़ी समय लग जाएगा। यह सब सोच कर उन्होंने सोचा कि जंगल के रास्ते से निकला जाए, जल्दी पहुँच जाउँगा !
तो उन्होंने अपना स्ता बदला और जंगल की तरफ़ अपनी गाड़ी को घुमा लिया।
बारह बज चुके थे गाड़ीरा तेज रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी तभी अचनाक तेज ब्रेक के साथ गाड़ी को रोकना पड़ा !
उनकी गाड़ी के आगे एक औरत ज़ोर-2 से रो रही थी।
उन्होंने सोचा इस वीराने में यह औरत क्या कर रही है, उन्हें लगा कि किसी मजदूर की पत्नी होगी जो नाराज़ होकर घर छोड कर जंगल में भाग आई है, तो उन्होंने उससे पूछा- यहाँ जंगल में तुम क्या कर रही हो?
लेकिन कोई जवाब न देकर वह और ज़ोर-2 से रोने लगी। सारे जंगल में उसकी हूँ हूँ हूँ हूँ सी सिसकियाँ गूँज रही थी।
फिर चौबे जी ने पूछा- तुम्हारा घर कहाँ हैं?
लेकिन वो कुछ भी ना बोली।
तब चौबे जी ने कहा- आज चलो मेरे घर में रहना, सुबह अपने घर चली जाना ! यह जंगल बहुत सारे जंगली जानवरों से भरा है, रात भर यहाँ मत रूको ! चलो आज मेरे घर में सब के लिए खाना बना देना और कल सुबह अपने घर चली जाना !
उसने यह सुना तो झट से तैयार हो गई और गाड़ी में पीछे की सीट पर बैठ गई ! सिर पर बड़ा सा घूँघट डालने की वजह से उसका चेहरा छिपा हुआ था !
कुछ ही देर में गाड़ी घर के दरवाजे पर थी, घर के लोग कब से उनकी राह देख रहे थे।
गाड़ी रुकते ही माँ ने पूछा- आज तो बहुत देर हो गई और सारे लोग आ भी चुके हैं !
तब उन्होंने सारी बातें अपनी माँ को बताई और कहा- आज खाना इससे बनवा लो, कल सुबह यह अपने घर चली जाएगी। इतनी रात को बेचारी जंगल में कहा भटकती, इसलिए मैं ले आया !
पर माँ को कुछ संदेह हो रहा था कि कहीं चोर तो नहीं है, रात को सोने के बाद या खाना बनाते समय कहीं घर के सामान ही चुरा कर ना ले जाए !
पर बेटे की बात को कैसे मना करती !
उन्होंने उस औरत को कहा- देखो, आज तो मैं रख ले रही हूँ लेकिन कल सुबह होते ही यहाँ से चली जाना ! जाओ रसोई में यह सामान उठा कर ले जाओ और खाना बना दो !
उसने फिर से जवाब नहीं दिया ! बस हूँ हूँ हूँ की ध्वनि सी बाहर आई !
और वो सारा सामान लेकर माँ के पीछे-2 चल दी !
रसोई में सारा सामान रखवा कर माँ ने उसे खाना जल्दी बनाने की सख्त हिदायत दी और वहाँ से चली गई ! लेकिन उनका मन कुछ परेशान सा था।
फिर 5 मिनट में रसोई में उसे देखने चली गई कि वो क्या कर रही है और उसका चेहरा भी देखना चाहती थी !
लेकिन...
वहाँ पहुँची तो देखा कि वो मछलियों का थैला निकाल रही थी।
उन्होंने बहुत ज़ोर से गुस्से में कहा- यहाँ सब खाने का इंतजार कर रहे हैं और तुम अभी तक मछलियाँ ही निकाल रही हो? कल सुबह तक बनाओगी क्या?
उसके सिर पर घूँघट अभी भी था तो चेहरा देखना मुश्किल था !
उन्होंने उससे कहा- तुम जल्दी से खाने की तैयारी करो, मैं आग सुलगा देती हूँ काम जल्दी हो जाएगा !
और वे जल्दी से चूल्हा जलाने की तैयारी करने लगी लेकिन साथ ही वो उसका चेहरा देखने की भी कोशिश कर रही थी।
लेकिन वो जितना देखने की कोशिश करती वो और पल्लू खींच लेती ! अंत में हार कर वे बोली- देखो, मैंने आग सुलगा दी है अब आगे सारा काम कर लो ! कुछ ज़रूरत हो तो बुला लेना !
लेकिन वो फिर कुछ नहीं बोली।
अब उन्हें लगा कि यहाँ से जाने में ही ठीक है वरना मेरा भी समय खराब होगा और हो सकता है कि अंजान लोगों से डर रही हो !
यह सब सोच कर उन्होंने उसे कहा- मैं आ रही हूँ, जल्दी से खाना बना कर रखना !
और वहाँ से निकल गई !
मन अभी तक परेशान ही था !
कभी अपने कमरे कभी बच्चों के कभी बाहर सब को देख रही थी, कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए, एक मिनट भी आराम से नहीं बैठ पाई !
अभी पाँच मिनट ही हुए थे पर उनके लिए वो घड़ी पहाड़ सी हो रही थी !
समय बीत ही नहीं रहा था !
आठ मिनट बड़ी मुश्किल से गुज़रे और वे तुरंत ही कुछ सोच कर रसोई की तरफ दौड़ी !
और वहाँ पहुँच कर...
जैसे ही उन्होंने रसोई घर का नज़ारा देखा, उनकी आँखे फटी की फटी रह गई ! उनके पैर बिल्कुल ही जम गये ना उनसे आगे जाया जा रहा था ना ही पीछे !
उनके हृदय की धड़कनें रुक रही थी !
वो औरत रसोई में बैठ कर कच्ची मछलियाँ खा रही थी ! सारी रसोई में मछलियाँ और खून बिखरा पड़ा था ! उसके सिर से घूँघट भी उतरा पड़ा था !
इतना खौफनाक चेहरा आज तक उन्होंने नहीं देखा था ! बाल, नाख़ून सब बढ़े हुए थे !
मछलियाँ खाने में मग्न होने की वजह से उसे कुछ ध्यान भी नहीं था ! और खुशी से कभी-2 वो आवाज़ें भी निकाल रही थी ! हूँ हूँ हूँ सी आवाज़ें गूँज रही थी !
रसोई पिछवाड़े में होने की वजह से और लोगों का ध्यान भी इधर नहीं आ रहा था !
माँ को भी कुछ नहीं समझ आ रहा था कि चिल्लाने से कहीं घर के लोगों को नुकसान ना पहुँचाए !
वो चुड़ैल से अपने घर को कैसे बचाए उन्हें समझ नहीं आ रहा था ! बस भगवान का नाम ही उनके दिमाग़ में आ रहा था !
अचानक वे आगे बढ़ने लगी उसकी तरफ !
और झट से एक थाल लिया और चूल्हे की तरफ दौड़ी ! उस चुड़ैल की नज़र भी माँ पर पड़ चुकी थी सो वो भी कुछ सोच कर उठी अपनी जगह से !
माँ कुछ भी देर नहीं करना चाहती थी, उन्हें पता था कि आज अगर ज़रा सी भी लापरवाही हुई तो अनहोनी हो जाएगी !
उस चुड़ैल के कुछ करने से पहले ही उन्हें चूल्हे तक पहुँचना था !
और चूल्हे के पास पहुँच कर उन्होंने जलता हुआ कोयला थाल में भर लिया और चुड़ैल की तरफ लेकर जोर से फेंका !
आग की जलन की वजह से वो अजीब सी डरावनी आवाज़ें निकालने लगी !
अब तो उसकी आवाज़ें बाहर भी जा रही थी, सारे लोग बाहर से रसोई की तरफ भागे !
वो चुड़ैल ज़ोर २ से हूँ हूँ हूँ... की आवाज़ निकाल रही थी और पूरी रसोई में दौड़ रही थी और माँ को पकड़ना भी चाह रही थी !
लेकिन अब सारे लोग रसोई में आ चुके थे तो लोगों की भीड़ देख कर वो और भी डर गई थी !
लोगों की भीड़ को ठेलती हुई वो बाहर जंगल की तरफ भागी !
और सारे लोग यह मंज़र देख कर डरे सहमे से खड़े थे और मन हीं मन माँ की हिम्मत की दाद दे रहे थे !
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